देवशायनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को देवशायनी या हरिशायनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार सारे व्रतों में एकादशी व्रत का एक विशेष महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन भगवान विष्णु पाताल लोक विश्राम के लिए चले जाते हैं और
भगवान सूर्य को ब्रह्मांड का निर्माता और जीवन का स्रोत माना जाता है। ये संसार को प्रकाश और गर्मी देने का कार्य करते है। रविवार को इनकी पूजा कर इनकी विशेष कृपा प्राप्त किया जा सकता है। अतएव प्रत्येक रविवार को सूर्य चालीसा पाठ कर श्री सूर्य जी के आरती (Aarti Shri Surya Dev Ji ) का पाठ करना चाहिए।
शिरडी वाले साईं बाबा की जीवन कथा ( shirdi wale sai baba ki jeevan katha) शिरडी वाले साईं बाबा की जीवन कथा(shirdi wale sai baba ki jeevan katha) बड़ा ही रोचक और चमत्कार से भरा था। शिरडी के श्री साईं बाबा सभी के है। इनके दरबार में अमीर, गरीब और सभी जात -धर्म के लोग एक सामान है। शिर्डी को हिंदुओं
शिव और भस्मासुर की कहानी (Shiv Bhasmasura Story) किसी समय भस्मासुर (Bhasmasura) नाम का एक राक्षस पृथ्वी पर रहता था। वह बहुत ही साहसी और निर्भीक था परन्तु वह महान मुर्ख था। वह कुछ भी करने से पहले उसके बारे में सोचता नहीं था । वह संसार में सबसे शक्तशाली बनने का चाहत रखता था। एक दिन, उन्होंने भगवान शिव
कोई शुभ कार्य का प्रारम्भ गणेश से होती है – क्या आप ने कभी सोचा है कि लोग कोई काम प्रारंभ करने से पहले भगवान विघ्नहर्ता गणेश का नाम क्यों लेते हैं? किसी और देवता का नाम लेने से पहले लोग गणेश को स्मरण करते हैं। किसी भी देवी व देवता के पूजा या आराधना करने से पहले गणेश की
सिद्धिदात्री स्वरुप (Siddhidatri Swarup) नवरात्रि के नवमें दिन देवी के सिद्धिदात्री स्वरुप की आराधना की जाती है। नवदुर्गा का यह रूप अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। इन्ही माता कृपा से भगवान भोले नाथ सिद्धि प्राप्त कर अर्धनारीश्वर रूप धारण किये थे । और संसार में शिव अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त कर सके । माता
महागौरी स्वरुप (Mahagauri Swarup) नवरात्रि के आठवें दिन देवी के महागौरी स्वरुप की पूजा की जाती है। नवदुर्गा का यह रूप अमोघ फलदायिनी है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है माता अपने इस रूप में गौर वर्ण की हैं। इनकी वर्ण की तुलना शंख , स्वेत कुंद की पुष्प व चन्द्रमा से की जाती है। श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः
कालरात्रि स्वरुप (Kalratri Swarup) नवरात्रि में सातवें दिन माँ नवदुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा और अर्चना का विधान है। देवी कालात्रि माता काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के अनेक रूपों में से एक स्वरुप माना जाता है। ये रौद्री और धुमोरना देवी के नाम से भी जानी जाती है | जैसा की स्पष्ट है ये घने
कात्यायनी स्वरुप (Katyayani Swarup) चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन । कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥ नवरात्रि में छठवें दिन माँ नवदुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा और अर्चना की जाती हैं। कात्यायन महर्षि के पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारन माता कात्यायनी कहलायी। माँ के सी स्वरूप में चार भुजाऐं हैं जो अस्त्र शस्त्र और कमल पुष्प से सुसज्जित है। कात्यायनी स्वरूप
स्कंदमाता स्वरुप (Skandmata Swarup) नवरात्रि के पाँचवें दिन स्कंदमाता स्वरुप की पूजा और उपासना किया जाता है। यह माता अपने भक्तों की समस्त मनोकामना पूरा करती हैं। इनके भक्त इस संसार के आवागमन मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया | शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी || चार भुजाओं वाली स्कंदमाता के दोनों ऊपर वाली भुजाओं में कमल पुष्प
कूष्माण्डा स्वरुप (Kushmanda Swarup) सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे। नवरात्रि के चतुर्थी यानी चौथा दिन माता कुष्मांडा की पूजन की जाती है। देवी के इस स्वरुप को आदिशक्ति कहा गया है। माता अपनी मंद मंद दैविक मुस्कान से इस अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड का निर्माण की हैं इसी कारण इस रूप को कूष्माण्डा कहा जाता है। जब हर तरफ
माँ चन्द्रघंटा स्वरुप ( Chandraghanta Swarup ) या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ : हे माँ! आप चंद्रघंटा के रूप में हमारी रक्षा के लिए सर्वत्र विराजमान हैं , आप हमारा कोटि कोटि प्रणाम स्वीकार करें । माता दुर्गा के नौ शक्ति रूपों में तीसरी शक्ति स्वरुप चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।